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भवा॒ वरू॑थं मघवन्म॒घोनां॒ यत्स॒मजा॑सि॒ शर्ध॑तः। वि त्वाह॑तस्य॒ वेद॑नं भजेम॒ह्या दू॒णाशो॑ भरा॒ गय॑म् ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

bhavā varūtham maghavan maghonāṁ yat samajāsi śardhataḥ | vi tvāhatasya vedanam bhajemahy ā dūṇāśo bharā gayam ||

पद पाठ

भव॑। वरू॑थम्। म॒घ॒ऽव॒न्। म॒घोना॑म्। यत्। स॒म्ऽअजा॑सि। शर्ध॑तः। वि। त्वाऽह॑तस्य। वेद॑नम्। भ॒जे॒म॒हि॒। आ। दुः॒ऽनशः॑। भ॒र॒। गय॑म् ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:32» मन्त्र:7 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:18» मन्त्र:2 | मण्डल:7» अनुवाक:2» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह राजा क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मघवन्) बहुधनयुक्त राजा ! आप (यत्) जो (मघोनाम्) धनवानों का (वरूथम्) प्रशंसित घर है उसे (समजासि) अच्छे प्राप्त होओ (त्वाहतस्य) तुम्हारे नष्ट किये हुए (शर्धतः) बलवान् के घर को प्राप्त (भव) होओ बलवान् के (गयम्) प्रजाजनों को (भर) धारण पोषण करो और (दूणाशः) दुर्लभ है नाश जिसका ऐसे होते हुए (वि) विशेषता से प्रसिद्ध हूजिये जिससे (वेदनम्) पदार्थों की प्राप्ति को हम लोग (आ, भजेमहि) अच्छे सेवें ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे राजा ! दुष्टों के मारनेवाले आपकी प्रजा में जो नीति उसी के अनुकूल कर्म हम लोग करें, जिससे हमारे अनुकूल आप होओ ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स राजा किं कुर्यादित्याह ॥

अन्वय:

हे मघवन्निन्द्र राजँस्त्वं यन्मघोनां वरूथमस्ति तत्समजासि त्वाहतस्य शर्धतो वरूथं प्राप्तो भव शर्धतो गयं भर दूणाशः सन् वि भव येन वेदनं वयमा भजेमहि ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (भव) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (वरूथम्) प्रशस्तं गृहम् (मघवन्) बहुधनयुक्त (मघोनाम्) धनाढ्यानाम् (यत्) (समजासि) सम्यक्प्राप्नुयाः (शर्धतः) बलवतः (वि) (त्वाहतस्य) त्वया हतस्य (वेदनम्) प्रापणम् (भजेमहि) सेवेमहि (आ) (दूणाशः) दुर्लभो नाशो यस्य सः (भर) धर। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (गयम्) प्रजाम् ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! दुष्टहन्तुस्ते प्रजायां या नीतिस्तदनुकूलानि कर्माणि वयं कुर्याम यतस्त्वमस्मदनुकूलो भवेः ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा ! प्रजेतील दुष्टांना मारण्याच्या नीतीनुसार आम्ही कर्म करावे. ज्यामुळे तू आमच्या अनुकूल व्हावेस. ॥ ७ ॥